दरभंगा महाराज कामेश्वर सिंह की जीवनी | Darbhanga Maharaj Kameshwar Singh Biography
दरभंगा महाराज के घर के अंदर चलती थी रेल
दरभंगा महाराज कामेश्वर सिंह की जीवनी Darbhanga Maharaj Jivani
दरभंगा महाराज कामेश्वर सिंह का जन्म 28 नवंबर 1907 को हुआ था
मिथिलांचल का
मुख्य जगह कहा जाने वाला दरभंगा अपने समृद्ध और अतीत के लिए पुरे हिंदुस्तान में प्रसिद्ध
है। दरभंगा
अपने महाराज के लिए पुरे हिंदुस्तान में
जाना जाता है। भारतीय
रेल ने अब जाकर निजी तेजस Train की शुरुआत की है लेकिन लगभग 150 साल पहले
दरभंगा महाराज लक्ष्मेश्वर सिंह के जमाने में उनके किले के अंदर तक रेल लाइन बिछी हुई थी और रेल चलती थी।
दरभंगा अपनी सांस्कृतिक और परंपराओं के लिए भी मशहूर है और
शहर बिहार की सांस्कृतिक राजधानी के रूप में लोकप्रिय है। यहाँ
का इतिहास प्राचीन काल से जुड़ा है जिसका वर्णन भारतीय पौराणिक और
महाकाव्यों में भी है।
अंग्रेज
भी मानते थे दरभंगा महाराज के रियासत का जलवा
देश के रजवाड़ों में दरभंगा राज का हमेशा अलग स्थान रहा है.
ये रियासत बिहार के मिथिला और बंगाल के कुछ इलाकों में कई किलोमीटर के दायरे तक फैला
था. रियासत का मुख्यालय दरभंगा शहर था. ब्रिटिश इंडिया में इस रियासत का जलवा अंग्रेज
भी मानते थे. इस रियासत के आखिरी महाराज कामेश्वर सिंह तो अपनी शान-शौकत के लिए पूरी
दुनिया में विख्यात थे. इससे प्रभावित होकर अंग्रेजों ने उन्हें महाराजाधिराज की उपाधि
दी थी।
लगभाग
150 साल पहले दरभंगा महाराज ने शुरू किया था निजी रेल
भारतीय रेलवे ने अब जाकर निजी तेजस ट्रेन की शुरुआत की है.
लेकिन आज से 150 साल पहले दरभंगा महाराज लक्ष्मेश्वर
सिंह के जमाने में उनके किले के अंदर तक रेल लाइन बिछी थी और और रेल चलती थी। दरअसल,
1874 में दरभंगा के महाराजा लक्ष्मेश्वर ने तिरहुत रेलवे की शुरूआत किया था उस समय
उत्तर बिहार में भीषण अकाल पड़ा था तब राहत कार्य के लिए बरौनी के बाजितपुर से दरभंगा
तक के लिए पहली ट्रेन (मालगाड़ी) चली थी।
रेलवे
का जाल बिछाने में महाराज का बड़ा योगदान
महाराजा
लक्ष्मेश्वर सिंह ने उत्तर बिहार में रेल लाइन बिछाने के लिए
अपनी कंपनी बनाई और अंग्रेजों के साथ एक समझौता किया इसके लिए अपनी जमीन तक उन्होंने
तत्कालीन रेलवे कंपनी को मुफ्त में दे दिया और एक हज़ार मज़दूरों ने कम समय में मोकामा
से लेकर दरभंगा तक की रेल लाइन बिछाई।
दरभंगा
महाराज ने चलाई थी पैलेस ऑन व्हील नाम से राजसी रेल
इसके अलावा महाराजा ने अपने लिए पैलेस ऑन व्हील नाम से भी
एक ट्रेन चलाई थी, जिसमें राजसी सुविधाएं मौजूद थीं. इस ट्रेन में चांदी से मढ़ी सीटें
और पलंग थे. इसमें देश-विदेश की कई हस्तियों ने दरभंगा तक का सफर किया था। इनमें
पंडित जवाहरलाल नेहरू, डॉ. राजेंद्र प्रसाद, डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन, कई रियासतों
के राजा-महाराजा और अंग्रेज अधिकारी शामिल थे।
दरभंगा
महाराज का आखरी रेल के बारे में जानकारी।
यह रेल दरभंगा
के आखिरी महाराजा कामेश्वर सिंह के निधन यानि 1962 के पहले तक नरगौना टर्मिनल पर आती-जाती थी 1972 में दरभंगा में ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय की शुरूआत हुई.
जिसके कुछ साल बाद नरगौना महल विश्वविद्यालय के अधिकार क्षेत्र में आ गया तब से ही
इस रेलवे प्लेटफार्म के बुरे दौर की शुरुआत हुई।
दरभंगा
महाराज ने रेल लाइन बिछाने के लिए मुफ्त में दिया था जमीन।
ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के सीनेटर संतोष कुमार
बताते हैं दरभंगा राज का बिहार में रेलवे के विकास में बहुत बड़ा योगदान था महाराजा लक्ष्मेश्वर सिंह ने उत्तर बिहार में रेल लाइनें बिछाने
के लिए अपनी जमीन मुफ्त में दिया था उनके पैसों से एक हजार मजदूरों ने मिलकर कम समय
में मोकामा से लेकर दरभंगा तक की रेल लाइन बिछाई।
सरकार
प्रशासन विश्वविद्यालय मिलकर संरक्षित करे विरासत।
अंतिम महारानी की ओर से संचालित महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह
कल्याणी फाउंडेशन के सीईओ श्रुतिकर झा ने कहा कि ऐतिहासिक नरगौना टर्मिनल का संरक्षण
किया जाना चाहिए और इसे पर्यटन स्थल में बदल देना चाहिए. उन्होंने कहा कि यह एक ऐतिहासिक
विरासत है जिसे सरकार, प्रशासन और विवि को मिलकर संरक्षित करना चाहिए ताकि नयी पीढ़ी
भी इस बारे में जान सके।
दरभंगा
महाराज के विरासत के बारे में कुछ जानकारी
अब दरभंगा महाराज के विरासत को बचाने की कोशिश किया जा रहा
है।
वक्त के साथ दरभंगा महाराज के योगदान को भुला दिया गया था
लेकिन पिछले कुछ सालों में रेलवे ने दरभंगा महाराज की यादों और धरोहरों को सँभालने
में दिलचस्पी दिखाई है। उम्मीद है कि विभाग के जरिए इस विरासत को बचाने
की कोशिश होगी जिससे बिहार की आने वाली पीढ़ियां भी इस गौरवशाली इतिहास को जान सकेंगे।