History of Nawada Bhagwati | नवादा भगवती का
इतिहास

Nawada
Bhagwati Sthan ke bare me Jankari | famous Mandir Near Benipur Darbhanga | बेनीपुर
दरभंगा के पास प्रसिद्ध मंदिर

नवादा गाँव में होती है मां भगवती के सिंहासन की पूजा

Nawada Bhagwati Mandir | famous Mandir Near Benipur Darbhanga


बेनीपुर क्षेत्र के अंतरगत प्रसिद्ध नवादा गाँव में हयहट्ट देवी के मंदिर में मां दुर्गा के सिंहासन की पूजा
होती है। आमतौर पर मंदिर में पूजा-अर्चना के लिए भक्तों की भीड़ हर दिन जुटती है लेकिन
नवरात्री के दौरान लोग काफी मात्रा में दर्शन के लिए आते हैं।

कलश स्थापना के दिन से ही मां के सिंहासन की पूजा के लिए
पड़ोसी देश नेपाल सहित मिथिलांचल के विभिन्न जिलों से श्रद्धालुओं के पहुंचने की लाइन
लग जाती है। बताया जाता है कि जो श्रद्धालु मैया के सिंहासन की सच्चे मन से पूजा
करते हैं, उनकी मनोकामना जरूर पूरी होती है।

नवादा भगवती का इतिहास History of Nawada Bhagwati

स्थानीय ग्रामीण बताते हैं कि हयहट्ट देवी अंकुरित भगवती
हैं। जिस जगह पर अभी माता का भव्य मंदिर है, वहां करीब चार सौ साल पहले जंगल था।
जंगल में प्रतिदिन गाय को चराने के लिए चरवाहे आते थे और एक गाय जंगल के एक जगह पर
अपना दूध बहा देती थी। इस बात की जानकारी होने के बाद ग्रामीणों ने उस जगह को साफ
कर एक झोपड़ी बनाकर अंकुरित भगवती की पूजा शुरू कर दी। कालांतर में गांव के लोगों
ने सामूहिक चंदा इकठ्ठा कर सार्वजनिक रूप से भव्य मंदिर का निर्माण कराया। नवादा
गांव में सैकडों वर्ष पहले हयहट्ट राजा का डीह हुआ करता था। उन्हीं के नाम पर देवी
का नाम हयहट्ट भगवती रखा गया।

History of Nawada Bhagwati | नवादा भगवती का इतिहास


नवादा भगवती की विशेषताएं Nawada Bhagwati Ki Visesta

मैया के सिंहासन को प्रतिदिन फूलों से सजाया जाता है।
ग्रामीण रामकुमार झा बब्लू, मुखिया बमबम झा, प्रो. अरविद झा, मुन्ना झा, रेणु झा,
डीके झा, महेश झा, माया झा सहित कई ग्रामीणों का कहना है कि सैकडों वर्ष पूर्व इस
मंदिर में बहेडी प्रखंड के हाबीडीह गांव के एक भक्त कमला नदी पार कर प्रतिदिन मैया
की पूजा करने आते थे। एक बार वे बीमार पड़े और मंदिर के मुख्य द्वार पर बेहोश होकर
गिर पड़े। भक्त इस चिता में थे कि अब वे कैसे पूजा करेंगे। किवदंतियों के अनुसार
मैया ने उस भक्त को स्वप्न में कहा कि मेरी मूर्ति को उठाकर ले चलो और फिर उस भक्त
ने सिंहासन से मैया की मूर्ति उठा ली और अपने गांव हाबीडीह चले गए। वहां हयहट्ट
देवी की मूर्ति आज भी स्थापित है। जब इस बात का पता नवादा के लोगों को चला तो
उन्होंने मूर्ति वापस लाने का निर्णय लिया। इस बीच उसी रात को मंदिर के तत्कालीन
पुजारी दामोदर गोसाई को मां भगवती ने स्वप्न दिया कि नवादा के लोग सिंहासन की ही
पूजा करें, वे उसी में प्रसन्न रहेंगी। उस दिन से लोग सिंहासन की पूजा करने लगे।

नवादा भगवती स्थान में होता है बलि प्रदान

वैसे तो
पूरे साल श्रद्धालुओं के आने का सिलसिला जारी रहता है लेकिन नवरात्रा में भक्तों
की भीड़ काफी बढ़ जाती है। नवरात्रा में मां भगवती के सिंहासन की विशेष पूजा-अर्चना
होती है। नवरात्रा में यहां बलि प्रदान भी होता है।

नवादा
भगवती अंकुरित हैं। भगवती के सिंहासन की पूजा जो भक्त सच्चे मन से करते हैं, उनकी
मनोकामना अवश्य पूरी होती है। नवरात्रा के अवसर पर पड़ोसी देश नेपाल के लोग यहां
भारी संख्या में पूजा-अर्चना करने के लिए आते हैं।

 

By Neha