Vidyapati biography in hindi | विद्यापति का जीवन परिचय
मिथिला के महान कवि विद्यापति जी की जीवनी
मिथिला के महान कवि विद्यापति जी का जन्म विद्वानों के अनुसार 1352 ईस्वी को बिसपी में हुआ था जो बिहार के मधुबनी जिला
मे स्थित है।
विद्यापति जी
को मैथिलि के कवि कोकिल और मैथिलि के कवि कोयल के नाम से भी जाना जाता है।
विद्यापति जी को बंगाली साहित्य का जनक भी जाना जाता है।
विद्यापति जी भारतीय साहित्य की भक्ति परंपरा के प्रमुख स्तंभों
मे से एक और मैथिली के महान कवि के रूप में जाने जाते हैं। इनके काव्यों में मैथिली
भाषा के स्वरुप देखा जा सकता है। विद्यापति जी महान शिव के भक्त भी थे।
मैथिल कवि विद्यापति तुलसी, सूर, कबूर, मीरा सभी से पहले
के कवि हैं। अमीर खुसरो यद्यपि इनसे पहले
हुए थे। इनका संस्कृत, प्राकृत अपभ्रंश एवं मातृ भाषा मैथिली पर समान अधिकार था। विद्यापति
की रचनाएँ संस्कृत, अवहट्ट, एवं मैथिली तीनों में है।
देसिल वयना अर्थात् मैथिली में लिखे चंद पदावली कवि को अमरच्व प्रदान करने के लिए काफी है। मैथिली साहित्य में मध्यकाल के तोरणद्वार पर जिसका नाम स्वर्णाक्षर में अंकित है, वे हैं चौदहवीं शताब्दी के संघर्षपूर्ण वातावरण में उत्पन्न अपने युग का प्रतिनिधि मैथिली साहित्य–सागर का वाल्मीकि–कवि कोकिल विद्यापति ठाकुर। बहुमुखी प्रतिमा–सम्पन्न इस महाकवि के व्यक्तित्व में एक साथ चिन्तक, शास्रकार तथा साहित्य रसिक का अद्भुत समन्वय था। संस्कृत में रचित इनकी पुरुष परीक्षा, भू–परिक्रमा, लिखनावली, शैवसर्वश्वसार, शैवसर्वश्वसार प्रमाणभूत पुराण–संग्रह, गंगावाक्यावली, विभागसार, दानवाक्यावली, दुर्गाभक्तितरंगिणी, गयापतालक एवं वर्षकृत्य आदि ग्रन्थ जहाँ एक ओर इनके गहन पाण्डित्य के साथ इनके युगद्रष्टा एवं युगस्रष्टा स्वरुप का साक्षी है तो दूसरी तरफ कीर्तिलता, एवं कीर्तिपताका महाकवि के अवह भाषा पर सम्यक ज्ञान के सूचक होने के साथ–साथ ऐतिहासिक साहित्यिक एवं भाषा सम्बन्धी महत्व रखनेवाला आधुनिक भारतीय आर्य भाषा का अनुपम ग्रन्थ है। परन्तु विद्यापति के अक्षम कीर्ति का आधार, जैसा कि पहले कहा जा चुका है, है मैथिली पदावली जिसमें राधा एवं कृष्ण का प्रेम प्रसंग सर्वप्रथम उत्तरभारत में गेय पद के रुप में प्रकाशित है। इनकी पदावली मिथिला के कवियों का आदर्श तो है ही, नेपाल का शासक, सामंत, कवि एवं नाटककार भी आदर्श बन उनसे मैथिली में रचना करवाने लगे बाद में बंगाल, असम तथा उड़ीसा के वैष्णभक्तों में भी नवीन प्रेरणा एवं नव भावधारा अपने मन में संचालित कर विद्यापति के अंदाज में ही पदावलियों का रचना करते रहे और विद्यापति के पदावलियों को मौखिक परम्परा से एक से दूसरे लोगों में प्रवाहित करते रहे।
महाकवि विद्यापति जी का पारिवारिक जीवन
महाकवि विद्यापति ठाकुर के पारिवारिक जीवन का कोई स्वलिखित प्रमाण नहीं है, किन्तु मिथिला के उतेढ़पोथी से ज्ञात होता है कि इनके दो विवाह हुए थे। प्रथम पत्नी से नरपति और हरपति नामक दो पुत्र हुए थे और दूसरी पत्नी से एक पुत्र वाचस्पति ठाकुर तथा एक पुत्री का जन्म हुआ था। संभवत: महाकवि की यही पुत्री ‘दुल्लहि‘ नाम की थी जिसे मृत्युकाल में रचित एक गीत में महाकवि अमर कर गये हैं। कालान्तर में विद्यापति के वंशज किसी कारणवश विसपी को त्यागकर सदा के लिए सौराठ गाँव (मधुबनी ज़िला में स्थित समागाछी के लिए प्रसिद्ध गाँ) आकर बस गए। वर्तमान समय में महाकवि के सभी वंशज इसी गाँव में निवास करते हैं।
महाकवि विद्यापति जी
का प्रमुख प्रयास
मिथिला के लोगों को देसिल बयना सब जन मिट्ठा का सूत्र दे
कर इन्होंने उत्तरी-बिहार में लोकभाषा की जनचेतना को जीवित करने का प्रयास किया है।
महाकवि विद्यापति जी
का प्रमुख रचनायें
विद्यापति जी ने संस्कृत, अवहट्ट और मैथिली तीन भाषाओँ में रचना की है
पुरुष परीक्षा
भूपरिक्रमा
कीर्तिलता
कीर्ति पताका
दानवाक्यावली
वर्षकृत्य
दुर्गाभक्तितरंगिणी
शैवसर्वस्वसार
महाकवि विद्यापति संस्कृत, अबहट्ठ, मैथिली आदि अनेक भाषाओं के प्रकाण्ड पंडित थे। रहे।
महेशवाणी और नचारी
जिन राजाओं ने महाकवि को अपने यहाँ सम्मान के
साथ रखा उनमें प्रमुख
है
(1) देवसिंह
(2) कीर्तिसिंह
(3) शिवसिंह
(4) पद्मसिंह
(5) नरसिंह
महाकवि विद्यापति राजवंश की तीन रानियों का सलाहकार
भी रह चुके हैं इन रानियों का नाम निचे दिया गया है।
(1) लखिमादेवी (देई)
(2) विश्वासदेवी और
(3) धीरमतिदेवी।
FAQ
(Q) पूरा नाम
Ans विद्यापति ठाकुर।
(Q ) विद्यापति कौन है?
Ans
मिथिला
के महान कवि
(Q) विद्यापति जी का जन्म कब
हुआ था
Ans 1380 इस्वी मे ग्राम बिसपी,
मधुबनी, बिहार में हुआ था
(Q) जन्म भूमि
Ans बिसपी गाँव, मधुबनी ज़िला, बिहार।
(Q) पिता
Ans श्री गणपति ठाकुर।
(Q) माता
Ans श्रीमती हाँसिनी देवी।
(Q) मुख्य रचनाएँ
Ans कीर्तिलता, मणिमंजरा नाटिका, गंगावाक्यावली, भूपरिक्रमा आदि।
विद्यापति
जी के निधन
विद्यापति की मृत्यु वाजिदपुर में हुई जो कि विद्यापति थाने के अन्तर्गत आता है यह स्थान समस्तीपुर जिला, बिहार राज्य में है। विद्यापति गंगा और शिव के परम भक्त थे, मृत्यु के कारण ही विद्यापति स्थान का नाम पड़ा है और था एक बड़ा धाम भी है लोग दर्शन करने आते हैं विद्यापति धाम में शिवलिंग के साथ इनकी भी पूजा होती है स्थानीय लोगो में इनके प्रति बड़ी श्रद्धा है।